पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/१०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

KARAamantav.RANA ARARA Palan

  • वीजक मूल

साखी-चिन गुरु ज्ञान दुन्द भई, ससम कही मिलि वात । युग युग सो कहवैया, काहु न मानी बात ॥५॥ __ रमैनी ॥ ६॥ वर्णहु कौन रूप ौ रेखा । दूसर कौन प्राहि 'जो देखा । वो ॐकार आदि नहिं वेदा । ताकर ! कहहु कौन कुलभेदा ॥ नहिं तारागन नहिं रवि चंदा । नहिं कछु होत पिताके विंदा । नहिं जल नहिं थल नहिं थिर पवना । को धरे नाम हुकुम ! को वरना ॥ नहिं कछुहोत दिवस निजु राती ।। ताकर कहहु कौन कुल जाती ।। साखी-शून्यसहज मन सुमिरते, प्रगट भई एक ज्योत । ताहि पुरुप को मै बलिहारी, निरालंब जो होत ॥६॥ रमैनी ॥७॥ तहिया होते पवन नहिं पानी । तहिया शृष्टि कौन उत्पानी । तहिया होते कली नहिं फूला। तहिया होते.गर्भ नहिं मूला ॥ तहिया होते विद्या नहिं वेदा । तहिया होते शब्द नहिं स्वात "