पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/१०६

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A nkutRARREAdmirikRRITATARAIPANE namalhadhanumat-ali.dudulamasan Animalantastini बीजक मूल शब्द ॥८६॥ कविरा तेरो घर कंदला में । यह जग रहत है भुलाना । गुरुकी कही करत नहिं कोई । अमहल महल दिवाना । सकल ब्रह्ममों हंस कवीरा काग न ? चोंच पसारा । मन्मथ कर्म धरे सब देही । नाद बिंद बिस्तारा ॥ सकल कवीरा बोले वानी । पानी। ‘में घर छाया ॥ अनन्त लूट होती घट भीतर । ई घटका मर्म न पाया॥ कामिनी रूपी सकल कवीरा। मृगा चरिंदा होई ॥ बड़ बड़ ज्ञानी मुनिवर थाके । पकरि सके नहिं कोई ॥ ब्रह्मा वरुण कुवेर पुरंदर । - पीपा श्री प्रहलादा ॥ हिरणाकुश नखवोद्र विदारा । तिन्हको कालन राखा ॥ गोरख ऐसो दत्त दिगम्बर।। नामदेव जैदेव दासा ॥ तिनकी खबर कहत नहिं ? कोई (उन्ह) कहॉ कियो हैं घासा ।। चौपर खेल होत घट भीतर । जन्मका पासा डारा ॥ दम दमकी कोई खबरि न जाने । करि न सके निरुवारा ॥ चारि।

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