पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/१०५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

thankaratixexxxx.maratix ३१०६ वीजक मूल जनेउ जो ब्राह्मण होना । मेहरी क्या पहिराया ।। वो जन्म की शूदिन पसे । तुम पांडे क्यों खाया ॥ हिन्दू तुरुक कहाँते प्राया । किन यह राह चलाया। दिल में खोंज देखु खोजादे। विहिस्त कहां ते । पाया ॥ कहहिं कबीर मुनो हो संतो। जोर करतु हैं भाई ॥ कवीरन श्रोट रामकी पकरी । अंत चलै पछताई ॥ ८४ ॥ AAAAAAAAAAFRAMhatanAMARHARRARAMATA शब्द ॥ ८ ॥ __भूला लोग कहें घर मेरा। जा घरमेंतृ भूला डोले । सो घर नाहीं तेरा। हाथी घोड़ा बैल बाहना । संग्रह. कियो घनेरा ॥ वस्तीमासे दियो खदरा | जंगल कियो बसेरा ॥ गांठि बांधि खर्च नहिं पटवो । बहुरि न कीयो फेरा ॥ वीवी बाहर हरम महल में । बीच मियां का डेरा नो मन सूत अभिनहिं सुरझे । जन्म र अरुझेरा॥ वहहिं कबीर सुनो हो संतो। यह पद का करंहुनिबेरा। ई