पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/१२६

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बीजक मूल* १२७.६ तजि घना । मरे यत्यादिक केते गना ॥ १५ ॥ । तता अति त्रियो नहिं जाई । तन त्रिभुवन में राखु छिपाई ॥ जो तन त्रिभुवन माहिं छिपावै । तत्वाहि । मिली तत्व सो पावै ॥ १६ ॥ थथा अति अथाह थाहो नहिं जाई। ई थिर ऊ थिर नाहिं रहाई ॥ थोरे थोरे थिर होउ भाई । विन थंभे जस मंदिर थभाई ॥ १७ ॥ ददा देखहु बिनसन हारा । जस · देखहु तस करहु विचारा ।। दशहु द्वारे तारी लावै । तब दयाल के दर्शन पावै ॥ १८ ॥ धधा अर्द्ध । ___माँहि धियारी । अर्द्ध छोड़ि ऊर्ध मन तारी ॥ अर्ध छोड़ि ऊर्ध मन लावै। पापा मेटिक प्रेम बढ़ावै । ॥ १६ ॥ नना वो चौथे महँ जाई । रामका गदहा। । होय खर खाई ॥ आपा छोड़ो नरक वसेरा । अजहुँ । मूढ़ चित्त चेत सकेरा ॥ २० ॥ पपा पाप करें सब। कोई । पाप के करे धर्म नहिं होई॥पपा कहे सुनह । रे भाई । हमरे से इन किछुवो न पाई ॥ २१ ॥ फफा फल लागे बड़ दूरी । चाखे सतगुरु देइ न