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पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/१२७

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  • वीजक मूल

तूरी ॥ फफा कह सुनहु रे भाई । स्वर्ग पताल की। खबरि न पाई ॥ २२ ॥ वा वर वर करें सब कोई। वर वर करे काज नहिं होई ॥ बत्रा वात कहें अर्थाई । फल का मर्म न जानहु भाई ॥ २३ ॥ भभा भभरि । रहा भरपूरी । भभरे ते है नियरे दूरी । भमा कहे। सुनहु रे भाई । भभरे आवे भभरे जाई ॥ २४ ॥ ममा के सेये मर्म नहिं पाई । हमरे से इन मूल गमाई ।। माया मोह रहा जग पूरी । माया मोहहि । लखहु विचारी ॥ २५ ॥ यया जगत रहा भरपूरी ।। जगतहु ते हे जाना दूरी ॥ यया कहे सुनहु रे भाई । हमही ने इन जैजै पाई ॥ २६ ॥ रा रारि । रहा अरुझाई । राम कहे दुख दरिद्र जाई ॥ रस कहे। सुनहु रे भाई । सतगुरु पूछिके सेवहु बाई ॥२७॥ लला तुतुरे घात जनाई । तुतुरे पाय तुतुरेपरचाई।। आप तुतुरे और को कहई । एके खेत दुनों निर्वहई । 1॥ २८ ॥ चवा वह वह कहें सब कोई । वह वह कहें काज नहीं होई ।। वह तो कहे सुने जो कोई।। Pint