पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/१५६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

Sharmarathi वीजक मूल १५७ हिंडोला। हिंडोला ॥१॥ __भरम हिंडोला झूलै सव जग प्राय ।। पाप पुण्य के खंभा दोऊ । मेरु माया माँहि ।। लोभ भँवरा विषय मरुवा । काम कीला गनि ॥ शुभ अशुभ बनाये डांडी । गहे दुनों पानि ॥ई कर्म पटरिया वैठिके । को को न झूले प्रानि ॥ झूलत गण गंधर्व मुनिवर । झूलत सुरपति इंद्र ।। । झूलत नारद शारदा । झूलत व्यास फणिंद्र ॥ झूलत विरंचि महेश शुक मुनि । झूलत सूरज चंद्र ।। श्राप निर्गुण सगुण होय । झूलिया गोविन्द ।। छो चारि चौदह सात एकइस । तीनिउ लोक बनाय । खानी बानी खोजि देखहु । स्थिर कोई न रहाय ॥ खंड ब्रह्मांड खोजि देखहु । छुटत कितह नाहि ॥ साधु संगति खोजि देखहु । जीव निस्तरि कितजाहिं । शशि सूर रैनि शारदी। तहां तत्र पल्लव नाहिं। काल अकाल परलय नहीं । तहां संत बिरले जाहि ॥ krrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrry