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पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/१८२

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  • बीजक मूल १८३.६

जहिया किर्तम ना हता। धरती हती न नीर । । उत्पति परलय ना हती । तबकी कहै कबीरा॥२०३।। जहांबोलतहांअक्षराया।जहांअक्षरतहांमनहिढाया। बोलअबोलएकद्वैजाईजिनयहलखासोंविरलाहोई२०४ तौलों तारा जग मगे । जौलों उगे न सूर ॥ तौलों जीव कर्म बस डोले। जो लों ज्ञान न पूर२०५ ई. नांव न जानें गाँवका । भूला मारग जाय ॥ काल गड़ेगा कांट । अगमन खसी कराय ।२०६ संगति कीजै साधु की । हरै औरकी व्याधि ॥ श्रोछी संगति कूरकी । आगे पहर उपाधि ।२०७ संगति से सुख ऊपजे । कुसंगति से दुख होय ॥ कहहिं कवीर तहांजाइये। जहाँ अपनीसंगति होय ॥ जैसी लागी और की। वैसे निवहे छोर ॥ कवड़ी कवड़ी जोरि के । पूँजी लक्ष करोर ॥२०६॥ श्राजु काल दिन कैक में । अस्थिर नाहिं शरीर ॥ कहहिं कवीरकस राखिहो। काँचे वासन नीर॥२,१०॥ बहु बंधन से बाँधिया । एक विचारा जीव ॥ T YYYY