सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/१९३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

MARAmarantarakATika 1 १६४ * वीजक मूल* जंत्रविचारा क्या करे । जब गया बजावनहार २९७, जो तू चाहे मुझको । छाँड सकलकी प्रास ॥ मुझही ऐसा होय रहो । सबसुख तेरे पास ||२६ साधुभयातो क्या भया । बोले नाहि विचार ॥ हतेंपराई प्रातमा । जीभ बांधि तवार ||२६|| हिंसाके घटभीतरे । वसे सरोवर खोट चले गांव जहां नहीं । तहाँ उठावन कोट ॥३००॥ मधुर वचन है श्रौपधी । कटुक बचन है तीर ।। श्रवणद्वार है संचरे । सालै सकल शरीर ॥३०|| ई टाढेस देखो मरजीवको । धाय जुरि पैठि पताल ! जीव अटक माने नहीं । लेगहि निकरा लाल ३०२॥ ई जग तो जहँडे गया । भया योगना भोग ।। तिल झारिकवीरा लिया। तिलैठी झारें लोग ॥३०॥ ये मरजीवामृत पीवा । क्या धसि मरसि पतार ॥ गुरुकीदयासाधुकी संगति । निकरियाव गहिद्वार३०४ ॥ केहि बुंद हलफो गये । केते गये . विगोय ॥ एक बुंदके कारने । मानुप काहेक रोय।।३०५॥