पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/२३

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aankari.raneerinxxxreat metert 1 २२ वीजक मूल । प्रजाली । तामहँ आपु. भये प्रति पाली ॥ बहुत जतन के बाहर अाया । तब शिव शक्ती नाम धराया । घरका सुत जो होय अयाना। ताके संग न जाहु सयाना ॥ सांची बात कही में अपनी । भया दिवाना और की पूनी ॥ गुप्त प्रगट है एकै दूधा । काको कहिए ब्राह्मण शूद्रा ।। झूठे गर्भ भूलो मति कोई । हिंदू तुरुक भूल कुल दाई ।। साखी-जिन यह चित्र बनाइया, साँचासो मूत्रधारि। - यहहिं कबीर ते जन भले,( जो ) चित्रवंतहि लेहि निहासि। . ॥ मनी ॥ २७ ॥ ब्रह्मा को दीन्हो ब्रह्मांडा | सप्त.दीप पुहुमी नो- खंडा ।। सत्य सत्य कहि विष्णु दृढ़ाई। तीन लोकमो* राखिन जाई । लिंग रूप तब शंकर कीन्हा । धरती खोलि रसातल दीन्हा ।। तब अष्टंगी रची कुमारी ।। तीनि लोक मोहा सब झारी ।। दुतिया नाम पार्वती । को भयऊ । तपकर्ता शंकर कह दियऊ। एकै पुरुप ! एक है नारी । ताते रची खानि भी चारी ॥ सर्वन mritiirthrirmirrrrts