पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/२९

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३२८ बीजक मूल * साग्वी-बीजक बतावे वित्तको । जो वित्त गुप्ता होय ॥ (ऐमे शब्द बतावे जीवको । युझे चिरला कोय ॥३८॥ रमैनी ।। ३८॥ यहि विधि कहाँ कहा नहिं माना । मारग माहिं पसारिनि ताना राति दिवस मिलि जोरिन तागा। प्रोटत कातत भरम न भागा । भरमे सर्व जग रहा समाई । भरम छोडि कतहूँ नहिं जाई॥ परे न पूरि दिनहु दिन छीना तहाँ जाय जहाँ अंग, बिहूना ॥ जो मत आदि अंत चलिाई । सो मत , सब । उन्ह प्रगट सुनाई। सारसी-यह सन्देस फुर मानिके । लीन्हेउ शीश चढ़ाय ।। संतों है सतोप सुख । रहहु तो हृदय जुडाय ॥ ३८॥ रमैनी ॥ ३९॥ जिन्ह कलमा कलिमाहिं पढ़ाया । कुदरत खोज तिनहु नहिं पाया ॥ कर्मत कर्म करे करतूता ॥ वेद कितव भये सब रीता ॥ कर्मत सो जग भी अवत- - रिया । कमत सो निमाज को धरिया ॥ कर्मते सु.: नति और जनेऊ । हिन्दू तुरक न जाने भेऊ ॥ irrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrirrn