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8 बीजक मूल २६ साखी-पानी पान सँजोय के । रचिया यह उत्पात ॥ शून्यहि सुरति समोइके । कासो कहिए जात ॥ २९ ॥ रमैनी ॥ ४०॥ ___आदम आदि सुधि नहीं पाई । मामा हवाई कहाँ ते भाई ॥ तब नहिं होते तुरुको हिन्दू ।। माय के रुधिर पिता के विन्दू ॥ तव नहिं होते। गाय कसाई । तब विसमिल्ला किन फुरमाई ॥ तब नहिं होते कुल औ जाती । दोजख विहिस्त कौन है उतपाती ॥ मन मसले की सुधि नहिं जाना। मतिभुलान दुइ दीन वखाना ॥ । सारखी-संजोगे का गुणरौ । पिन जोगे गुण जाय । जिभ्या स्वारथ कारणे । नर कीन्हे बहुत उपाय ॥ ४० ॥ रमैनी ॥ ४१॥ अंबुकी रासि समुद्र की खाई । रवि शशि कोटि तैतीसों भाई ।। भंवर जाल में प्रासन मांडा। चाहत सुख दुख सङ्ग न छाड़ा ॥ दुखका मर्म नई काह पाया । बहुत भॉति के जग भरमायां ॥ मन-RAHARITRAKASANATARAKHAkhirakARRE A RRANAMRAT