पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/३१

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३० . बीजक मूल आपुहि वाउर श्रापु सयाना । हृदया वसे तेहि राम न जाना। साखी-तहि हरी तेहि ठार । तेहि हरी के टास । ___ना यम भया न जामिनी । भामिनि चली निरास ॥४२॥ रमनी ॥ ४२ ॥ ___ जब हम रहल रहल नहिं कोई । हमरे माहि रहल सब कोई ॥ कहहु राम कोन तोरि सेवा । सो समुझाय कहो मोहि देवा ।। फुरफुर । कहऊँ मार है सब कोई झूठेहिं झूठा संगति होई ॥ अांधर कहें । सबै हम देखा । तहाँ दिठियार घेठि मुख पेखा ॥ । यहि विधि कहऊँ मानु जो कोई । जस मुख तसई जो हृदया होई ।। कहहि कबीर हँस मुसु काई ।। । हमरे कलह छुटिहो भाई ॥ रमनी ॥४३॥ जिन्ह जीव कीन्ह आपु विश्वासा । नर्क ! गये तेहि नहिं वासा ॥ श्रावत जात न लागे । वारा । काल अहेरी सांझ सकारा । चौदह विद्या