पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/३७

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३६ वीजक मूल धड । साखी कहहिं कबीर पुकारिके। सबका उह विचार ॥ कहा हमार माने नहीं, किमि छुटै भ्रम जार ॥ ५२ ॥ रमैनी ॥ ५३॥ महादेव मुनि अंत न पाया । उमा सहित उन जन्म गमाया । उनहूं ते सिध साधक होई ।। मन निश्चय कह कैसे कोई ॥ जब लग तनमें आहै सोई । तब लग चेति न देखे कोई ।। तब चेतिहो जब तजिहो पाना । भया अयान तब मन ! ६ पछताना ।। इतना सुनत निकट चलि आई । मन विकार नहिं छूटै भाई ।। साखी-तीन लोक मुत्रा को प्रायः । छटि न काहुफि पारा । है , एकै अंधरे जग साया। सपका भया निरास ॥ ५३॥ स्मैनी ॥५४॥ । मरिगो ब्रह्मा काशिको वासी । शीव सहित मृये अविनासी ॥ मथुरा को मरिगौ कृष्ण गोवारा ॥ मरि मरि गये दशो अवतारा॥ मरि मरि गये भक्ति जिन्ह ठानी। सर्गुण मा निर्गुन जिन्ह लानी ॥ साखी-नाथ मछिंद बाँचे नहीं । गोरख दत्त श्री व्यास ।