पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/५

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R-. नीर क्षीर निर्णय करे, हंस लक्ष सहि दान ।। दया रूप थिर पद रहे, सो पारख पहिचानणा देहमान अभिमान के, निर · हंकारी होय । वर्ण कर्म कुल जाति ते, हंस निन्यारा होय . जग विलास है देह को, साधो करो विचार । सेवा साधन मन कर्म ते, यथा भक्ति उरधार । . इति वीजक फल सम्पूर्ण Marathimantritam arhanMAmitteNRNERMAN mfirmatiti rritrut