पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/६३

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RAMATA APAR ६२ . बीजक मूल *. .. आई ॥ करि अस्नान तिलक दे बैठे । विधिसों। ३ देवि पुजाई ॥ प्रातम राम पलक में बिनसे ।। रुधिरकी नदी वहाई ॥ अति पुनीत ऊँचे कुल कहिये । सभा माहिं अधिकाई ॥ इन्हते. दीक्षा सब । कोई माँगे । हँसी श्रावे मोहि भाई ॥ पाप कटन को कथा सुनावें । कर्म करावे नीचा ॥ हम तो दुनो परस्पर देखा । यम लाये हैं धोखा ।। गाय । वधेते तूरुक कहिये । इनते वे क्या छोटे ॥ कहहिं । कवीर सुनो हो संतों । कलिमा ब्राह्मण खोटे ॥११॥ द॥ १२ ॥ संनो मते मातु जन रंगी। पियत पियाला प्रेम सुधारस । मतवाले । सतसंगी ॥ धर्षे ऊः भाठी रोपिनि । लेत कसारसई 'गारी ॥ मूंदे मदन काटि कर्म कस्मल । संतति! चुवत अगारी ॥ गोरखदत्त वशिष्ठ व्याप्त कवि । नारद शुक मुनि जोरी ॥ वैठे सभा शंभु सनका दिक । तहँ फिरे अधर कटोरी ।। अंबरीप यो जाज्ञा Attithin Hopsistant wrrnerrammmmmmm