पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/६२

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  • वीजक मूल

६१ पटवारी ॥ कहहिं कबीर सुनो हो संतो । भैंसे न्याव निबेरी ॥ ६ ॥ शब्द ॥ १० ॥ . सन्तो राह दुनों हम दीठा । हिन्दू तुरुक हटा नहिं माने । स्वाद सबन को मीग ॥ हिन्दू बरत एकादशी साधे । दूध सिंघारा सेती ।। अन्नको त्यागे मनको न हटके । पारन करें सिगौती ॥ तुरुक रोजा निमाज गुजारे । बिसमिल ; बाग पुकारे । इनको बिहिस्त कहाँ से होवे । जो । साँझे मुरगी मारे । हिन्दुकी दया मेहर तुरुकन की। दोनों घट सो त्यागी ॥ ई हलाल वै झटका मारे । भाग दुनों घर लागी । हिन्दू तुरुक की एक राह है । सतगुरु सोई लखाई ॥ कहहिं कवीर सुनो हो संतो । राम न कहूँ खुदाई ॥१०॥ शब्द ॥ ११ ॥ . सन्तो पॉडे निपुण कसाई ।। ___बकरा मारि भैंसा पर धावे । दिलमें दर्द न.