पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/८५

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८८ वीजक मूल सपने की नाईजना चारि मिलि लगन सोधाये ।। जना पाँच मिलि माँडो छाये।। सखी सहेलार मंगल अंगावें ॥ दुख सुख माथे हरदि चढ़ावें ॥ नाना रूप परी मन भाँवरि । गाँठि जोरि भाई पतिया ई ।। अर्घा दे ले चली सुवासिनी । चौके रॉड भई सँग। इसाई ॥ भयो विवाह चली विनु दुलहा । बाट जात समधी समुझाई । कहें कवीर हम गौने जैवे । तस। कंथ ले तूर वजैवे ।। ५४ ॥ शब्द ॥ ५४॥ . नरको दाढस देखो आई । कछु अकय । कथ्यो है भाई॥सिंह शार्दुल एक हर जोतिन । सी। कस वोइनि धाने । वनकी भुलइया चाखुर फेरे।। छागर भये किमाने । छेरी वाघे व्याह होत है। मंगल गावै गाई । बनके रोज घरि दायज दीन्हो । गोहलो कंधे जाई । कागा कापर धोवन लागे । बकुला किरपहि दाँते ।माखी मृण्ड मुडावन लागी।। हमहुँ-जार वराते ॥ कहहिं कबीर सुनो हो संतो।। LA HTTTTTTTTTTIME Trmins