पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/९३

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PARERAKARMANAKAMARA

  • बीजक मूल *

गाँयल । फुलवा विनसि गो भँवर निरासल ॥ कहहिं । कवीर मुनो संतो भाई।पंडित जन फुल रहत लुभाई॥ शब्द ॥ ६४ ॥ जोलहा वीनह हो हरिनामा । जाके सुर नर मुनि धरे.ध्याना ॥ ताना तने को अठा लीन्हा।। चरखी चारित वेदा ॥ सरकुंडी एक रामनरायण ।। पूरण प्रगटे कामा । भवसागर एक कठवत कीन्हा।। तामें मांडी साना ॥ मांडी का तन मॉडि रहा है। मांडी विरले जाना ।। चाँद सूर्य दुई गोडा कान्हा।। मांझ दीप कियो मांझा । त्रिभुवननाथजो मांजन लागे | श्याम मुररिया दीन्हा ॥ पाईके जब भरना। इलीन्हा । वय बाँधन को रामा। वय भरा तिहुँलोकहिं । बाँधे । कोई न रहत उवाना ।। तीन लोक एक करि। गह कीन्हो । दिग मग कीन्होंताना ॥ आदि पुरुष । । बैठावन वैठे । कविरा ज्योति समाना ॥ ६ ॥ . । शब्द ॥ ६५ ॥ .. योगिया फिरि गयो नगर मँझारी । जाय।