पृष्ठ:बुद्धदेव.djvu/१०५

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( ९२ ) लगे तो उन्होंने निश्चित किया कि उपादान का हेतु तृष्णा है। तृष्णा ही में फंसकर मनुष्य शुभाशुभ कर्म करता है । तृप्णा विना कोई किसी कर्म में प्रवृत्त होता ही नहीं। अब तृष्णा.क्यों होती है ? इसका उत्पादक कौन है ? जब इस पर वे विचार करने लगे, तब उन्हें साक्षात् हुआ कि वेदना ही इस तृष्णा का कारण है, जिसे सुख दुःख आदि कहते हैं । पर वेदना की उत्पत्ति का हेतु उन्हें अन्वेपण करने से स्पर्श के हो प्रतीत हुआ। क्योंकि यदि स्पर्श, गंध, रूपादि न हो तो सुख दुःख आदि वेदनाएँ कहाँ से हों ? पर स्पर्शादि कहाँ से होते हैं ? स्पर्शादि का कारण पड़ायतन अर्थात् स्पर्शादि के प्रधान आधारभूत श्रोत्र, त्वक, चक्षु, जिल्वा, घ्राण और मन ही हैं । इस पड़ायतन का कारण विचारपूर्वक नामरूप, फिर नामरूप का कारण विज्ञान, विज्ञान का कारण संस्कार और संस्कार का कारण अविद्या उन्होंने उत्तरोत्तर निर्धारित किया । इस प्रकार गौतम ने दुःख, समुदय; निरोधगामिनि और प्रतिपद नामक चार आर्य सत्यों का साक्षात्कार किया और उनको समस्त संसार कार्ग-कारण के सूत्र में बद्ध ओतप्रोत दिखलाई देने लगा। उस समय प्रातःकाल जब उपा का आगम हुआ और पूर्व दिशा में भगवान् भुवनभास्कर निकलने की तैयारी करने लगे, तब उन्हें सम्यक्संवोधि प्राप्त हुई और उनका अंतःकरण वोधिज्ञान से परिपूर्ण हो गया। वे बुद्ध हुए। उस समय वे ब्रह्मानंद में निमग्न हो गए और यह उदानगान करने लगे-- . * बौद्ध दर्शनों में इंद्रियों के विषयों को स्पर्श कहते हैं। .