वैश्य, जो पाँच गाड़ी शालि लिए उत्कल से आ रहे थे, पहुंचे। कहते हैं कि यहाँ पहुँचने पर उनकी गाड़ियों के चक्के कीचड़ में फंस गए । निदान उन्हें अपनी गाड़ियों को निकालने की चिंता . पड़ी। वे इधर उधर उद्विग्न फिर रहे थे कि वे राजायतन वृक्ष के नीचे पहुंचे और वहाँ महात्मा गौतम बुद्ध को बैठे देख उन्हें प्रणाम कर उन्होंने उनके सामने सत्तू और मधु के मोदक अर्पण किए। महात्मा बुद्धदेव ने उनके अर्पित मोदक को सहर्प अपने भिक्षापात्र में ले लिया और उनको भक्षण कर उन्हें अपना केश देकर यह आशीर्वाद दिया- .. दिशा स्वस्तिकरं दिव्यं मांगल्यं चार्थसाधकम् । : अर्था वः सम्मवाः सर्वे भवत्वाशु प्रदक्षिणा । a more- - -
- बोट ग्रंथों में लिखा है कि उस समय गौतम बुद्ध को चातुर्महाराण
धैयण, धृतराष्ट्र, विभड़क धौर विरुपाक्ष पार पात्र दिए थे घो गया के पर्वत के काले पत्थर के बने थे। महात्मा गौतम बुद्ध ने उन पात्रों को एक दूसरे पर घर के दवा दिया था और वे एक दूसरे में समानिष्ट होकर पफ हो गए थे।