पृष्ठ:बुद्धदेव.djvu/१११

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कहते हैं कि इस सप्ताह में एक नाग, जिसे काल नाग वा शेषनाग कहते हैं, वह से निकलकर गौतम के ऊपर अपने साम्न फणों से छाया किए रहा और उसने दृष्टि से उनकी रक्षा की । यहाँ गोतम के मुँह से यह उदान निकला- सुखों विवेकस्तुष्टस्य श्रुतधर्मस्य पश्यतः । । अव्यावध्य सुखं लोके प्राणिभूतस्य संयमः ।। सुखा विरागता लोके पापानां समतिक्रमः । अस्मिन्मानुप्यविपये एतद्वै परमं सुखम् ।। विवेक-तुष्ट और श्रुतधर्म को यह देखकर सुख है कि लोक में अव्यावाध सुख प्राणिमात्र का संयम है । विरागता सुख है, पापों से बचना सुख है, इस मनुष्य-लोक में यही परम सुख है। __पानी बंद होने पर वे सातवें सप्ताह में मुचलिंद-दह से पश्चिम राजायतन नामक स्थान पर गए । राजायतन बोधि वृक्ष से ४. धनु पर दक्षिण दिशा में था। यहाँ गौतम बुद्ध एक सप्ताह तक रहे। सप्ताह के अंत में देवताओं ने उन्हें दिव्य हरीतकी, नाग-लता और अनववततहद का जल दिया । यहाँ गौतम बुद्ध जल से हाथ मुँह धो नाग-लता से दंतधावन कर दिव्य हरीतकी खाकर बैठे थे कि इसी बीच में उत्कल देशवासी त्रपुप और भल्लिक नामक दो ___ * ललितविस्तर में रामायतम का नाम नारायण खिसा है । उसमें वर भी लिखा है कि उन लोगों की गाड़ियों के पहिए महात्मा पुढदेव के तेज से भूमि में धंसने लगे। गाड़ियों के पहिए धंसने पर ये पपराए हुए नारापर के नीचे पहुंचे।