पृष्ठ:बुद्धदेव.djvu/१२५

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( ११२ ) हे भितुओ! यह दुःखसमुदय नामक दूसरा आर्या-सत्य पूर्व धर्मों में कभी नहीं सुना गया था। इससे मुझ में चक्षु, ज्ञान, प्रज्ञा, विद्या और आलोक उत्पन्न हुए। हे भिक्षुओ! यह दुःखसमुदाय नामक पार्य-सत्य त्यागने योग्य है । यह पहले धमों में नहीं सुना गया था। इससे मुझ में चक्षु, ज्ञान, प्रना, विद्या और आलोक उत्पन्न हुए । हे भिक्षुत्रो! इस दुःखसमुदय नामफ आर्य-सत्य को मैंने त्याग दिया। यह पहले धर्मों में नहीं सुना गया था। इससे मुझ में चक्षु, ज्ञान, प्रज्ञा, विद्या और आलोक उत्पन्न हुए। हे मितुओ! यह दुःखनिरोध नामक तीसरा आर्म्य-सत्य पहले धर्मों में नहीं सुना गया था। इससे मुझ में चक्षु, ज्ञान, प्रज्ञा, विद्या और आलोक उत्पन्न हुआ। हे भिक्षुगण ! यह दुःख- समुदय नामक भार्य-सत्य साक्षात् कर्तव्य है । यह पहले धर्मों में नहीं सुना गया था। इससे मुझ में चक्षु, ज्ञान, प्रज्ञा, विद्या और आलोक उत्पन्न हुए । हे भिक्षुओ! इस दुःखनिरोध नामक प्रा-- सत्य को मैंने साक्षात् कर लिया । यह पहले धमों में नहीं सुना गया था। इससे मुझ में चक्षु, ज्ञान, प्रज्ञा, विद्या और श्रालोक उत्पन्न हुए। हे भिक्षुगण ! यह दुःखनिरोघगामिनी प्रतिपदा नामक चौथा आर्म्य-सत्य है। यह पहले घमा में नहीं सुना गया था। इससे मुझ में चक्षु, ज्ञान, प्रज्ञा, विद्या और आलोक उत्पन्न हुए। यह दुःखनिरोधगामिनी प्रतिपदा नामक आर्य-सत्य भावना करने योग्य है। यह पहले धर्मों में नहीं सुना गया था। हे भिक्षुगण ! इससे