पृष्ठ:बुद्धदेव.djvu/१३८

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( १२५ ) ही मनुष्य विरक्त होता है। विरक होने पर ज्ञान उत्पन्न होता है। तब उसका जन्मक्षय होता है। तभी उसका ब्रह्मचर्य समाप्त होता है अर्थात् उसे ब्रह्मचर्य पालन का फल मिलता है। वह अपना कर्तव्य समाप्त करता है। वह फिर यहाँ आंकर जन्म-ग्रहण नहीं करता।