• (१५) राजगृह सव्वपापस्स समनं कुसलस्स उपसंपदा । . . सचित्तपरियोहवनं एतं वुद्धानुसासनं ॥ गयशीर्प पर्वत पर कुछ दिन काल विताकर महात्मा बुद्धदेव भिक्षु संघ साथ लिए राजगृह गए । राजगृह में वे यष्टिवन में उतरे। राजा विंबसार को जब भगवान बुद्धदेव के आने का समाचार मिला, तब वे अनेक ब्राह्मण पंडितों को साथ लेकर यष्टिवन में भगवान् बुद्धदेव के पास आकर उपस्थित हुए । अभिवादन और कुशल प्रश्नानंतर सब लोग यष्टिवन में बुद्धदेव के पास बैठ गए। महात्मा बुद्धदेव के पास मगध के परमपूज्य विद्वान् अग्निहोत्री उरुविल्व- काश्यप को अपने भाइयों और शिष्य मंडली समेत बैठे देख सव पंडितों के मन में यह क्षोभ उत्पन्न हुआ कि उरुविल्वकाश्यप भगवान् बुद्धदेव के अंतेवासी हैं अथवा उन्होंने संन्यास ग्रहण किया है और बुद्धदेव ने उनसे संन्यास गृहण कर उनका शिष्यत्व स्वीकार किया है । लोगों को उरुविल्वकाश्यप जैसे कर्मनिष्ठ ब्राह्मण को अग्निहोत्र त्याग कर श्रमणरूप धारण किए देख अत्यंत विस्मय हुआ । जव लोगों से न रहा गया तो उन्होंने विवश हो उरुविल्व- वासी उरुविल्वकाश्यप से पूछा कि " महात्मन् उरुविल्व-काश्यप, क्या * आप कृपा कर यह बता सकते हैं कि आपने अग्निहोत्र का
- कि मेवदिस्या उरुवेसयासी, पहासि धागि किसको बदानो ।
पुच्चामि त कस्सप स्तमत्थं, कर्ष पहीनं तय प्राग्गिहु ।