सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:बुद्धदेव.djvu/१४२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

( १२९ ) " एक दिन अश्वजित * भिक्षु राजगृह में भिक्षा के लिये जा रही था। दैवयोग से उसो दिन सारिपुत्र भी राजगृह में भिक्षा के लिये गया। मार्ग में सारिपुत्र ने प्रशांत अश्वजित् को भिक्षा के लिये जाते हुए देखा । उसकी प्रसन्न आकृति देखकर उसने अपने मन में सोचा कि यह साधु अत्यंत शांतचित्त और शुद्ध अंतःकरण का,दिखाई पड़ता है। इसने अवश्य आत्मतत्व कां. साक्षात् किया होगा अथवा यह उस माग में उन्मुख हो गया है । अच्छा चलो, इसके पीछे चलकरं जिज्ञासा करें। यह विचार कर' सारिपुत्र उसके पीछे हो लिया। जव अश्वजित भिक्षा लेकर नगर के बहार आया, तो पेड़ के नीचे बैठकर भोजन करने लगा :: सारिपुत्र भी वहीं उसके पास बैठ गया। जव अश्वजित् भोजनः कर चुका, तब-सारिपुत्र ने अश्व- जित् से सविनय पूछा कि- "भगवान्, आप बड़े प्रशांत देख पड़ते हैं । आप कृपा करके मुझे यह बतलाइए कि आपने किससे शिक्षा ग्रहण की है और आप किस धर्म के अनुयायी हैं। अश्वजित् ने सारिपुत्र का यह प्रश्न सुनकर कहा- .;.: ये धम्मा हेतुप्पभवा तेसं हेतु तथागतो.आहं।

तेसं च यो: निरोधो एवं वादी महासमरणो 'ति' !!

... हे सारिपुत्र! जो हेतु से उत्पन्न धर्य दुःख रूप है, तथागत ने उनका हेतु समुदय बतलाया है और समुदय का निरोध भी बतलाया है। महाश्रमण गौतम बुद्ध ने उस निरोध का मार्ग समझाकर हम लोगों को बतलाया है, वह हमारे शिक्षक हैं। मैं उनका एक लघुश्रावक हूँ।

  • प्रश्न परमपनियोंकि से या .

-