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पृष्ठ:बुद्धदेव.djvu/१४३

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(१३. ) अश्वजित् की यह सारंगर्मित बात सुनकर सारिपुत्र को ज्ञान हो गया। उसकी आँखें खुल गई, वह वहीं से दौड़ा हुआ प्रौद्गलार यन के पास गया और उसने उससे सारा, समाचार कह सुनाया। मौद्गलायन भी उसके साथ संजय के पास गया और बोला कि हम- लोगों को भगवान बुद्धदेव के पास, चलकर धर्म की जिज्ञासा करनी चाहिए । संजय ने..उसकी बात नहीं मानी, और वह महात्मा बुद्धदेव के पास चलकर धर्मजिज्ञासा करने पर, उद्यत नहीं हुए। निदान दूसरे दिन सारिपुत्र और मौद्गलायन दोनों. राजगृह में वेणुवन को धर्मजिज्ञासा के लिये गए। संजय के अन्य शिष्य भी उन दोनों के साथ वेणुवन में जहाँभगवान बुद्धदेव भिक्षुसंघ को उपदेश कर रहे थे, आए। - दोनों परिव्राजक आकर भगवान् बुद्धदेव के. चरण पर गिर पड़े और उन्होंने उनसे उपदेश करने की प्रार्थना की.। भगवान ने उन्हें ब्रह्मचर्य्य का उपदेश .देकर कहा कि, जालो, सन्न. दुःखों का नाश करने के लिये उस समय तक ब्रह्मचर्य का पालन करो ज़ब तक कि उपसंपदा लाभ न हो।. .. .... ... .. . : .. ____ भगवान् ने सारिपुत्र और मौद्गलायन को: उपदेश दे कर उन्हें अपने शिष्यों में सब पर प्रधानता दी। इस प्रकार राजगृह में द्वितीय चातुर्मास्य बिताकर उन्होंने अनेक लोगों को समय समक पर उपदेश किया जिसका घटनानुसार सविस्तर वर्णन त्रिपिटक में भरा पड़ा है। . ..... ... :: - राजगृह में भगवान् के उपदेश से इतने पुरुषों ने संन्यास ग्रहण किया कि स्त्रियोंज को, ब वे नगर वा प्राम में मिक्षा के लिये