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पृष्ठ:बुद्धदेव.djvu/१४५

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(१६) कपिलवस्तु उत्तिद्वेय पढ्बजेय धम्म सुचरितं चरे। धम्मचारी सुखं सेते इह लोके परम्हि च । जय महात्मा गौतम बुद्ध धर्म के प्रचार की दुदुभी बजाते उरुवेला से राजगृह में आए. और वहाँ उन्होंने धर्म का प्रचार करना प्रारंभ किया, तवं उन के नए धर्म की ख्याति उत्तरीय भारत में चारों ओर फैल गई। उनके बुद्ध होने और राजगृह में रहकर धर्म की प्रचार करने का. समाचार जब कपिलवस्तु में पहुँचा, तव उनके पिता महाराज शुद्धोदन को अपने पुत्र के देखने की इच्छा और प्रेम ने विहवल कर दिया। उन्होंने अपने एक मंत्रिपुत्र को अनेक पुरुषों के साथ राजगृह में सिद्धार्थ को जो उस समय बुद्ध हो गए थे, बुलाने के लिये भेजा.। पर दैवयोग से वह मंत्री और उसके सारे साथी जब राजगृह: में पहुँचे, तब वे ,महात्मा बुद्धदेव के धर्मोपदेशों से इतने प्रभावित हुए कि उन्हें सच्चा-वैराग्य उत्पन्न हो गया और सब ने शिखाः मुँडा. भित्तुओं का भेष ग्रहण कर लिया . और कपिलवस्तु वा महाराज शुद्धोदन के संदेसेः को वे.ऐसा भूल गए कि उन्होंने कभी महात्मा बुद्धदेव के सामने उसकी चर्चा भी न चलाई। ... ... ... . .. जव महीनों बीत गए और वह मंत्रिपुत्र जिसे बुद्ध को बुलाने के लिये भेजा था, नहीं लौटा-और न कुछ, उसका सँदेसा ही मिला, तब लाचार हो घबराकर महाराज .शुद्धोदन ने दूसरे राजपुरुष को