न्यग्रोधाराम में पहुंचने पर भगवान बुद्धदेव अपने संघ संमेत यहाँ बैठ गए। राहुल भी उनके पास बैठकर विनीत भाव से बोला-'भगवन् ! आप मेरे पिता हैं । आप मेरा पैतृक खत्व, जिसका मैं उत्तराधिकारी हूँ, कृपापूर्वक मुझे प्रदान कीजिए। राहुल की यह प्रार्थना सुन बुद्धदेव ने अपने शिष्य सारिपुत्र को बुला कर कहा-" सारिपुत्र ! तुम राहुल को प्रव्रज्या प्रदान करो।" सारिपुत्र ने उसी समय राहुल के केश मुँडा, उसे पीला भगवा वस्त्र पहना बुद्ध, धर्म और संघ की वंदना करने की आज्ञा दी और राहुल ने बुद्ध, धर्म और संघ की शरण ग्रहण की। जब राहुल के संन्यास ग्रहण करने का समाचार महाराज शुद्धोदन को मालूम हुआ, तब वे घबराकर दौड़े हुए न्यग्रोधाराम में बुद्धदेव के समीप पहुँचे और आँखों में आँसू भरकर उनसे बोले- भगवन् ! जब आपने संसार त्याग किया, तब मुझे अत्यंत केश हुआ। मैं दुःख सागर में डूब गया। तदनंतर जब नंदकुमार गृह-त्यागी हुआ, उस समय मुझे और भी अधिक दुःख हुआ। पर मैंने राहुल कुमार को देखकर अपने मन में ढारस बाँधा था। आज आपने कुमार राहुल को भो संन्यास ग्रहण करा के मुझे अत्यंत कष्ट एहुँचाया । मेरे दुःख का हाल मेरे अंतःकरण से पूछिए । मैं इस दुःख से विकल हूँ। मेरा जो कुछ सत्तानाश होना था, सो तो हो. ही गया। अब वह बदल नहीं सकता । पर अब आपसे एक वात के लिये आग्रह करता हूँ कि आगे आप किसी बालक को उसके पिता और माता की आज्ञा के विना संन्यास न दें। यही मेरी अंतिम
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