पृष्ठ:बुद्धदेव.djvu/१६०

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(१४७ ) ने गौतम बुद्ध का नाम लिया और कहा कि आज कल वे महाराज चिंवसार के यहाँ राजगृह के वेणुवन विहार में भिक्षुसंघ के साथ ठहरे हैं । राजा ने बुद्धदेव को ऐसे समय में आमंत्रित करना उचित समझा और महाराज विंवसार के पास उन्हें बुलाने के लिये अपने मंत्री को भेजा । महाराज विंवसार ने बड़ी धूमधाम से महात्मा बुद्धदेव को वैशाली भेजा और गंगा के तट तक वे स्वयं उनके साथ गए । वैशाली के लिछिवी महाराज उधर गंगा के तट तक उन्हें लेने के लिये आए । गंगा पार करते ही उन्हें बड़े गाजेबाजे के साथ ले कर वे अपनी राजधानी वैशाली को लौटे । कहते हैं कि वैशाली में दुखा । वह यहां से भागकर जंगल की चोर चला । मार्ग में डांकुनी ने उसके वस्त्र हीन.लिए । वह नंगा एक गांव में गया। गांववालों ने उसे कपड़ा देना चाहा, पर उस ने यह कह फर वस्त्र का तिरस्कार कर दिया कि लज्जा की निवृत्ति के लिये ही बस्त्र की भावश्यकता पड़ती है । पाप से लज्जा होती है । निषू तपाप के लिये घस्त्र की भाव- श्यकता नहीं। वह नंगा रहता था। उसके पांच सौ शिष्य थे और असो हवार मनुष्य उसके अनुयायी थे । [२] मस्करीगोशाल को संखलीगोसाल भी कहते हैं । वह गोशाल का पुत्र या जो एफ दासी से उत्पन्न हुआ था । कहते हैं कि वह अपने सिर पर अपने स्वामी का घो लेकर कहीं जा रहा था। मार्ग में पैर फिसलने से गिर पड़ा । वह भय से भागा, पर स्वामी ने उसके घस्न छीन खिर । घह नंगा संगत में भाग गया और विरक्त हो गया । उसके भी पांच सौ शिष्य और अस्सी इबार अनुवायी थे। [३] अषित केपघल, किसी पुरुष के यहां मौकर था और वहीं उठे विराण सुधा श ह सिर दावा