पृष्ठ:बुद्धदेव.djvu/१६७

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(२१) सातवाँ चातुर्मास्य . . वेणुवन में आने पर महाराज विवसार ने उनसे निवेदन किया- "महाराज ! आपके योग-विभूति-प्रदर्शन वर्जित करने से अन्य तीर्थ करों ने संसार में बहुत प्रकार का प्रवाद फैला रखा है और वे लोग आपको पाखंडी प्रसिद्ध कर रहे हैं।" महाराज ने उनसे एक बार योग-विभूति-प्रदर्शन करने के लिये आग्रह किया, जिस पर उन्होंने आगामी आपाढ़ पूर्णिमा के दिन उत्तर कौशल में विभूति- प्रदर्शन करना स्वीकार किया। , ____उसी वर्षे श्रावस्ती का एक वैश्य जिसका नाम सुदत्त था, राजगृह में आया और उसने महात्मा बुद्धदेव के उपदेश सुन उनका धर्म ग्रहण किया। उसने चलते समय भगवान् से श्रावस्ती पधारने के लिये प्रार्थना की जिसे उन्होंने स्वीकार किया और चातुर्मास्य के समीप पधारने का वचन दिया। सुदत्त ने श्रावस्ती पहुँचकर भगवान् के संघ के लिये वहाँ ज्येष्ठ कुमार का आराम मोल ले वहाँ जेतवन नामक विहार बनवाया और राजगृह से श्रावस्ती तक एक एक योजन पर धर्मशालाएँ और प्याऊ बनवाए । वसंत ऋतु के आगमन के समय सुदत्त स्वयं' भगवान् बुद्धदेव को लाने के लिये फिर राजगृह गया और वहाँ से उन्हें संघ समेत लेकर आषाढ़ मास के अंत में श्रावस्ती पहुंचा। ___यहाँ उनके साथ साथ पुराणकश्यप, मस्करीगोशाल आदि - तीर्थंकर भी श्रावस्ती आए । आषाढ़ पूर्णिमा के दिन बुद्धदेव अपना भिक्षापात्र लेकर आनंद के साथ श्रावस्ती में गए और, भिक्षा ले कर जव वे नगर के द्वार पर पहुंचे, तब महाराज का एक प्रधान