पृष्ठ:बुद्धदेव.djvu/१६९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

( २२ ) आठवाँ चातुर्मास्य जव चातुर्मास्य अंत होने को आया तव सारिपुत्र और मौद्ग- लायन भगवान् बुद्धदेव के पास त्रयस्त्रिंश में गए और उन्होंने उनसे फिर संसार में पधारने के लिये कहा । भगवान् ने उनसे कहा कि अव हम संकाश्य नगर में उतरेंगे । तदनुसार भगवान् आश्विन . पूर्णिमा के दिन संकाश्य नगर के दक्षिण द्वार के पास उतरे। संकाश्य नगर से वे श्रावस्ती आए । वहाँ जेतवन विहार में रह कर वे धर्मोपदेश करने लगे। सहस्रों मनुष्य नित्य धर्मोपदेश सुनने आने लगे। यह देख अन्य तीर्थंकरों को बड़ी डाह हुई और वे लोग बुद्धदेव को अपमानित करने के प्रयत्न में लगे । एक दिन उन लोगों ने संध्या के समय चिंचा नाम की एक स्त्री को भगवान् बुद्धदेव के पास उपदेश सुनने के लिये भेजा। तब से वह वरावर कई दिन तक लगातार उपदेश सुनने जाती रही। तीन मास वाद उन्होंने चिंचा से यह खबर उड़वा दी कि मुझे महात्मा बुद्धदेव से गर्भ रह गया है और इस प्रकार महात्मा बुद्धदेव के चालचलन पर लांछन लगाने की चेष्टा की। उन लोगों ने चिंचा को गौतम बुद्ध के पास भेजा। उसने भगवान बुद्धदेव के पास जाकर कहा-"महाराज मुझे, आपके संसर्ग से गर्भ रह गया है, आप इसका प्रबंध कोजिए।" गौतम को चिंचा को वात सुन अत्यंत विस्मय हुआ और उन्होंने कहा-"चिंचा! तू क्यों झूठ कह रही है ? तू झूठी है। सत्य का परित्याग करा मिथ्या बोलनेवाला, जिसे परलोक का भय नहीं है, कौन सा पाप नहीं कर