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पृष्ठ:बुद्धदेव.djvu/१७०

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( १५७ ) सकता।"* अंत को यही हुआ । उसका सारा आरोप मिथ्या प्रमाणित हुआ और महात्मा बुद्धदेव का नाम और आदर और भी बढ़ गया । तीर्थंकर लोग अपने किए पर लजित हुए। ___ श्रावस्ती से चलकर भगवान् बुद्धदेव शिंशुमारगिरि पर गए । वहाँ नकुलपिता और नकुलमाता नाम के ब्राहमण दंपती रहते थे। वे दोनों महात्मा बुद्धदेव को आते देख दौड़े और उन्हें पकड़कर अपना ज्येष्ठ पुत्र कहकर रोने लगे और बड़े आदर से अपने घर ले गए । उन लोगों ने अपने पुत्रों से उन्हें मिलाया और कहा कि यह तुम्हारे बड़े भाई हैं। भगवान ने उनका आतिथ्य स्वीकार किया। जव शिंशुमारगिरि के राजा बोधिकुमार को भगवान बुद्धदेव के आगमन की सूचना मिली, तब उसने भगवान बुद्धदेव को अपने नवीन घर में जिसे उसने बनवाया था,गृह-प्रवेशके अवसर पर आमंत्रित किया। कहते हैं कि उसने अपने राज्य में अपने एक वास्तु-विद्या- विशारद बढ़ई से, जिसका नाम चित्रवर्धकी + था, एक नवीन काप्ट गृह बनवाया था। गृह-प्रवेश के समय राजा की रानियों ने पुत्र

  • एक घम्म तीवस्स भुसवादिस्स जंतुना

घितिरसापरलोकस्स मत्यिपापं अफारियं ।

  • कहते हैं कि घर बनने पर राजा ने चित्रवर्धकी के प्राण लेने

का इसलिये विचार किया था जिससे कि वह फिर वैसा दूसरा परम .धनाये । इसका पता पा चित्रवर्धकी एक गरुड वना अपने परिवार समेत उस पर पढ़ उत्तर पर्यत को भाग गया और वहां कावाह नामक नगर भनाकर रहने लमा।