पृष्ठ:बुद्धदेव.djvu/१७१

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उत्पन्न होने की इच्छा से मार्ग में अपने वस्त्र इसलिये विछवा दिए कि भगवान् उन वस्त्रों पर से होकर जायेंगे और उनके प्रसाद से उन्हें पुत्रलाभ होगा। पर भगवान् ने राज-प्रसाद में जाते समय उन वस्त्रों पर पैर नहीं रखा और उन्हें हटवाकर वे भीतर गए । वहाँ भोजन कर उन्होंने राज-परिवार को अनेक धर्मोपदेश किए और रानियों को उनके पुनर्जन्म का हाल बतला कर कहा- .. अत्तानं चे पियं जन्या रक्खेय्य नं सुरक्खितं । तिन मन्यतरं यामं परिजग्गेय पण्डित। : यदि आत्मा प्रिय जानते हो तो इसे सुरक्षित रखो और तीन पहर में कभी न कभी पंडित होकर इसके शुभ के लिये चिंतन और प्रयत्न किया करो। शिंशुमारगिरि के महाराज के अनुरोध से भगवान् बुद्धदेव अपने शिष्यों समेत उस वर्ष वर्षा ऋतु में वहीं रहे और वहीं उन्होंने अपना आठवाँ चातुर्मास्य किया। वे चार महीने तक वहाँ के लोगों को और संघ के लोगों को उपदेश करते रहे। वर्षा का अंत होने पर चे वहाँ से फिर श्रावस्ती चले आए। ..