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पृष्ठ:बुद्धदेव.djvu/२३२

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( २१९ ) सब लोगों में प्रचार करो। हे भिक्षुकगण! अब मेरा समय आं गया है। अब तीन महीने बाद मैं निर्वाण को प्राप्त हूँगा । तुम सावधान होकर काम करना । मेरा जीवन पूरा हो गया, अब मेरे जीवन के थोड़े ही दिन शेष रह गए हैं। अब मैं संसार त्याग कर जाऊँगा। मैंने अपने आपको अपना शरण बनाया है अर्थात मैं अपनो श्रात्मा के वास्तविक रूप में स्थिर हो गया हूँ। हे भिक्षकगण, अब तुमको अप्रमत्त, समाहित और सुशोल होना चाहिए और सुसमाहित संकल्प होकर अपने चित्त का पर्यवेक्षण वा अनुरक्षण करना चाहिए । जो भिक्षक अप्रमत्त होकर इस धर्मविनय में प्रवृत्त होगा, वह जाति और संसार को त्याग कर दुःख का नाश करेगा।" वैशाली में इस प्रकार भिक्षुसंघ को उपदेश कर बुद्धदेव वहाँ से मंडग्राम को गए । वहाँ भिक्षुओं के संघ को एकत्र करके उन्होंने कहा-"हेभिक्षुभो ! अब तुम्हारा कर्तव्य है कि तुम शील, समाधि- प्रज्ञा और विमुक्ति का अनुशीलन करते हुए संसार में विचरो।' मंडपाम से बुद्धदेव हस्तिग्राम, आम्रपाम और जंबूमाम में ठह-

  • परिपको पयो मा परिश मम घोषितं ।

पहाय को गमिस्वामि क मे रणं भनो । अपमती सतिमची सीला होय भिक्खयो। पुण्माहितरकप्पो सचिन अनुरक्खर । दो इनलि पम्मविनये अपनत्तो विसति । पहाय पानि सारं दुक्खसकरिसति ।