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पृष्ठ:बुद्धदेव.djvu/२३३

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(२९० ) रते और वहाँ के मितुओं को धर्मोपदेश करते हुए भोगनगर में गर और वहाँ के आनंदचैत्य नामक विहार में ठहरे। वहाँ बुद्धदेव ने मिताओं को एकत्र करके उनसे कहा-'मेरे बाद यदि कोई विद्वान् भिजु वा स्थविर तुमको किसी बात का उपदेश करे तो तुम उसे सहसा मानने के लिये उचत न हो जाना । तुम उसे मेरे उप- देशों से मिलाना और विचार करना । अनुकून होने पर उसे ग्रहण फरना और प्रतिकूल होने पर उसका तिरस्कार करना।" भोगनगर से भगवान बुद्धदेव पावा गए। वहीं उनके आगमन का समाचार सुन चुद नामक कर्मकार (कमकर) जो पावा का प्रधान था, उनके पास आया और उसने विनोत भाव से दूसरे दिन अपने घर भोजन करने के लिये उन्हें संघ सहित निमंत्रण दिया। भगवान बुद्ध ने तूरणो भाव धारण कर चुंद का निमंत्रण खोकार किया। दूसरे दिन भगवान बुद्धदेव ससंघ चुद के यहाँ भोजन के लिये गए। चुद ने अनेक प्रकार के भक्ष्य भोज्य पदार्थ तय्यार किए और जब वह परोसने लगा तव बुद्धदेव ने चुद से कहा- "चुंद, तुम सूअर का मांस मुझ को हो देना,दूसरे को मत देना। गहापरिनिर्वाण सून में 'गूफर महर्य पद कई स्थलों में पाया है, जैसे "अयसो दो फम्मार पुनो तस्सा रचिया अवयन सके मिषराने पगीत खादनीनं भोजनीय परिपादयित्वा महुत व अकरमहर्ष" इत्यादि । योड भिक्षुगप का पारन है कि 'सफरमहर' एप कंद का माम है। पर युद्धपोप ने भर्यफया में 'पूकर महयन्ति नातिवरसस्त नाति भरिणत एकवेढक फरस्त पपई पसंत फिरपुदुचेष पिनदं पहोती सिखा विसे निरसन होता