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किया है कि किसी अवस्था में भी असत्य न बोलना चाहिए । वे
कहते हैं-
सभंगतो वा परिसग्गतो वा
एकस्स चको न मुसा भरणेय्य।
नभाणये भणनं नानुजना।
सव्वं अभूतं परिवज्जयेय्य ॥
सभा में जाकर, चाहे परिषद् में जाकर अथवा परस्पर मिथ्या
न बोलना चाहिए, न बोलने देना चाहिए और न बोलने की आज्ञा
देनी चाहिए । सब असत्य वाक्यों को बोलने के पहले ही परिवर्ज
करना चाहिए। .
भगवान् बुद्धदेव ने ऐसे लोगों का सबसे अधिक तिरस्कार
किया है जिन्हें महाराज मनु ने धर्म-ध्वजी कहा है । वे वसल-सुत्त
में कहते हैं- .
यो च अनरहा संतो अरहं पटिजानती।
चोरोस ब्रह्मकेलोके एस खो वसलाधमो॥
जो अनह; अयोग्य होकर अपने को योग्य समझता है, वह
'ब्रह्मलोक में चोर है और ऐसे पुरुष को वृषलाधम कहते हैं। .
.. - गृहस्थों के लिये उनका सबसे उत्तम उपदेश दुष्टों के संग की
परित्याग करना है । वे कहते हैं-
असेवनं च वालानं पंडितानं च सेवनं ।
पूजा च पूजनीयानं एतं मंगलमुत्तमं ॥ .
तस्मा हवे सप्पुरिसं भजेथ
पृष्ठ:बुद्धदेव.djvu/२५०
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