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पृष्ठ:बुद्धदेव.djvu/३५

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दन से अपने पिता के घर जाने की इच्छा प्रकट की । महाराज शुद्धोदन ने महामाया की इच्छा भंग करना अनुचित जान उनको महाप्रजावती के साथ देवदह जाने की आज्ञा दे दी। चटपट महामाया के देवदह जाने की तैयारी हुई और उसने प्रजावती के साथ देवदह के लिये प्रस्थान किया।

कपिलवस्तु और देवदह के बीच शाक्य राज्य की सीमा ही के भीतर महाराज शुद्धोदन ने एक उत्तम बाग बनवाया था। उसका नाम लु विनी * कानन था । वह उस समय एक उत्तम उद्यान था। बाग में एक छोटा सा प्रासाद बना था जहाँ महाराज शुद्धोदन ग्रीष्म ऋतु में कभी कभी विहार के लिये जाकर ठहरा करते थे। कपिलवस्तु से चलकर महारानी महामाया और महाप्रजावती वहीं जाकर ठहरीं । कहते हैं कि महाराज शुद्धोदन भी प्रेमवश उनके साथ लुंबिनी तक पधारे थे।

लुंबिनी पहुँचने पर । महामाया को प्रसववेदना हुई। इस कारण वे देवदह को न जा सकीं । माघ पूर्णिमा के दिन महामाया लुविनीकानन में फिर रही थी कि अचानक उनके प्रसव का समय ___________________________________________

  • यह स्थान नेपाल राज्य में भगवानपुर के पास है शोर भय से रोमिन देवो कहते हैं। यहां एक टूटा हुआ अशोक फा स्तंभ भी है।

कई ग्रंथों का मत है फि महामाया ने लुघिनी फानन में . रात को चार स्वप्न देखे - पहले उसने देखा फि छः दांतोवाला एक सुंदर सफेद हाथी उसके उदर में प्रवेश कर गया । फिर उसने देखा कि मैं आकाश में उड़ रही हूँ। तीसरी बार उसने अपने को एक ऊंचे पहाड़ से उतरते देखा और अंत को उसने देखा कि सहस्त्रों मनुष्य उसके आगे साष्टांग दंडवत कर रहे है ।