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आ गया। इस समय उनकी बहिन और छोटी पटरानी महाप्रजावती तथा अन्य कई दासियाँ उनके साथ थीं। महामाया प्रसववेदना से असमर्थ हो एक शाल वृक्ष के नीचे उसको डाली पकड़कर खड़ी हो गई और इसी समय भगवान् बुद्धदेव का जन्म हुआ।
महाराज शुद्धोदन ने पुत्रजन्म का समाचार सुनकर बड़ा उत्सव मनाया । अनेक प्रकार के दान ब्राह्मणों को दिए। उनके सब मनो- रथ पूर्ण हो गए और हर्प में आकर उन्होंने अपने मुँह से राजकुमार का नाम सिद्धार्थ रक्खा। महात्मा बुद्धदेव के जन्म के दिन श्रावस्ती, राजगृह, कौशांबी और उज्जयिनी देशों के राजाओं के घर भी प्रसेनादित्य, विवसार, उदयन और प्रद्योतकुमार के जन्म हुए । चारों ओर भारतवर्ष में आनंद की दुंदुभी वंजने लगी । चारों दिशाएँ जय जय शब्द से गूंँज उठीं। पाँचवें दिन कुल-पुरोहित विश्वामित्र ने कुमार को सुगंधित जल से स्नान करा के उसका नामकरण संस्कार किया और उसका नाम गौतम रक्खा गया। कहते हैं कि मायादेवी पुत्र-जन्म के सातवें दिन प्रसूतिकागृह ही में अपने प्रिय-पुत्र को महाप्रजावती की गोद में दे परलोक सिधारीं । महाराज शुद्धोदन ने महामाया के परलोकवास होने पर सिद्धार्थ कुमार के लालन-पालन के लिये आठ अंगधात्री, आठ क्षीरधात्री, आठ मलधात्री और आठ क्रीड़ाधारी नियुक्त की और वे महाप्रजावती कोबालक सहित कपिलवस्तु में ले आए। ___________________________________________
- किसी किसी ग्रंथ में अशोक वृक्ष के नीचे लिखा है।