सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:बुद्धदेव.djvu/४१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

( २८ ) आचार्याधीनो वेदमधीप्व, क्रोधानृते वर्जय" इत्यादि सदुपदेश दे कर कुमार सिद्धार्थ को चंदन की पट्टिका दे कौशिक विश्वामित्र के चरणों में समर्पण किया । परम कारुणिक विश्वामित्र जी कुमार को "सत्यं वद । धर्म चर । स्वाध्यायान्माप्रमदः । आचाव्य प्रियं धनमाहृत्य प्रजातन्तु मान्यवच्छेत्सीः । सत्यान्न प्रमादितव्यं । धर्मान प्रमादितव्यं । कुशलान्न प्रमादितव्यं । भूतैर्न प्रमादितव्यं । स्थाध्याय प्रवचनाभ्यां न प्रमादितव्यं । देवपितृकार्याभ्यां न प्रमादितव्यं ।" का उपदेश दे सावित्री मंत्र का उपदेश किया और फिर कुमार को अपने साथ ले वे अपने आश्रम को सिधारे। कुमार सिद्धार्थ विश्वामित्र जी के साथ उनके आश्रम पर आए । माम विश्वामित्र जी ने उन्हें वर्ण-ज्ञान कराया और शिक्षा के नियम के अनुसार प्रत्येक वर्ण के प्रास्य, प्रयत्न इत्यादि बताकर वर्णों का स्पष्ट उच्चारण करना सिखलाया। फिर चंदन की पाटी पर ब्राह्मी,

  • यर्जयेन्मधुमांस प गंधमाल्य रसास्त्रियः ।

शुक्तानि यानि सर्वाणि माणिनां धैय हिंसनम् । अभ्यंग जनधारणोरुपामध्छनधारणं । का फ्रोधं च सोम घ नर्तनं गौतयादनम् । दातं च जनवाद च परीयाद तथावृतम् । स्त्रीणां च मे क्षणालभमुपघातं परस्परम् । एकःशयीत सर्वत्र नरेतःस्कन्दयेत्पचित । कामादि स्कन्दयन तो हिनस्ति ब्रतमात्मन: [ ननु] . + ब्राह्मी, खरोष्ट्री, पुष्करसारी, अंगलिपि, बंगलिपि, मगलिपि, मांगल्वसिर्षि, मनुष्यचिपि, अंगुलीयलिपि, सकारिलिपि, ब्रह्मवल्लीलिपि,