.. (४) शिक्षा . :- मातृमान् पितृमान प्राचार्य्यवान् पुरुषोवेद । - .. यद्यपि सिद्धार्थ कुमार को उनकी माता महामाया सात दिन का छाड़कर परलोक सिधारी थीं, पर उनकी विमाता महाप्रजावती ने उनको बड़े प्यार से पाला और वे कुमार को राजोचित शिक्षा देती' रहीं। महाराज शुद्धोदन ने अपने कुल-पुरोहित उदयिन को बुलाकर बालक के नामकरण; निष्क्रमण आदि सब संस्कार कराए । कुमार अत्यंय गंभीर, शांत और दयालु थे । कहते हैं कि एक बार कुमार शाक्यकुमारों के साथ 'कपिलवस्तु नगर के बाहर खेल रहे थे कि देवदत्त नामक एक शाक्य कुमार ने अपने बाण से लक्ष्य लगाकर.' एक पक्षी को मारा । वाण के लगते ही पक्षी पृथिवी पर गिर पड़ा। उसको पकड़ने के लिये सब लड़के दौड़े । पर सिद्धार्थ ने सब से पहले दौड़कर उसे उठा लिया और उसके शरीर से वाण निकाल . कर अपने पैर में उसकी नोक को चुभोया। इस परीक्षा से उन्होंने पक्षी की पीड़ा का अनुभव कर उसे अपनी गोद में उठा लिया और उसको तर्व तक अपनी आँखों से दूर न किया जब तक कि पक्षी विलकुल नीरोग न हो गया। जब कुमार की अवस्था आठ वर्ष की हुई तब शुद्धोदन ने शुभ मुहूर्त में महर्षि कौशिक को बुलाकर उनका व्रतवन्ध संस्कारः कराया। कुमार सिद्धार्थ को मृगचर्म, मेखला, दंड आदि देकर ब्रह्म- चारी बनाया गया। पिता ने "अपोशन, कर्म कुरु, दिवा या खाप्सी,