पृष्ठ:बुद्धदेव.djvu/६

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और समवृत्ति में स्थिर रहकर एकाप्रचित्त रहना। उपयुक्त अष्टांगिक मार्ग ऐसे साधन हैं जिनसे मनुष्य एक आदर्श पुरुष हो सकता है। इनके बिना मनुष्य सुन तो सकता है, पर मनन और निदिध्यासन नहीं कर सकता।. . महात्मा बुद्धदेव का दार्शनिक सिद्धांत ब्रह्मवाद वा.सर्वात्मवाद था । उन्होंने एक स्थल पर स्वयं कहां है- . . - ब्रह्मभूतो अतितुलो मारसेनप्पमरनो। . . सव्या मित्ते वसीकत्वा मोदामि अकुतोभयो ।. ___मैं अतितुल्य ब्रह्मभूत हूँ, मैंने मार की सेनाएँ नृष्ण आदि नष्ट कर डाली हैं, मैंने मैत्री से सबको अपने वश में कर लिया है, मैं ब्रह्मानंद में निमग्न हूँ, मुझे किसी का कुछ भी भय नहीं है। ___. इस ग्रंथ के लिखने के लिये निम्नलिखित ग्रंथों से मैंने.सामग्री संग्रह की है- .. ललितविस्तर!.. . अश्वघोषकृत बुद्धचरित। धम्मपदः। दीर्घनिकाय । . - मध्यमनिकाय! ... अंगुत्तरनिकाय खुदकनिकाय। सुत्तनिपात ...