में अनुरक्त हो गया था, पर जिन लोगों ने अभ्यास और वैराग्य द्वारा
उसे हटाकर योगसाधन का प्रयत्न करना प्रारंभ किया और कर रहे
है। ऐसे लोगों का प्रयत्न उस पुरुप को नाई है जो गीली लकड़ी
को अरणी से मथकर अग्नि निकालना चाहता है। ऐसे लोग यदि
लगकर श्रम करें तो समाधि-सिद्धिपूर्वक प्रज्ञा लाभ कर सकते हैं
और उन्हें सुगमता से सफलता प्राप्त हो सकती है। तीसरे वे लोग
हैं जिनके चित्र काम-भोग की तृष्णा और रागादि से अभिषिक्त
नहीं हैं और जो योगाभ्यास द्वारा प्रज्ञा की प्राप्ति का प्रयत्न कर रहे
है। इन लोगों का प्रयत्न ठीक उस पुरुप की नाई है जो सूखे काठ
की अरणी से मथकर भाग निकालना चाहता है। ऐसे लोग यदि
श्रम करें तो रागादि के उन्मूलन होने से वे अवश्य प्रज्ञा लाभ कर
सकते हैं।
___ यह विचार कर उन्होंने सोचा कि सब से पहले कायशुद्धि
की आवश्यकता है और कायशुद्धि तप के विना होना असंवभ है।
कायशुद्धि के बिना चित्त की शुद्धि नहीं होती और चित्त की
शुद्धि के विना विशुद्ध प्रज्ञा की प्राप्ति भी असंभव है। वे गया से
तपोभूमि की तलाश में चले और उस पर्वत के इधर उधर फिर
रहे थे कि निरंजना नदी के किनारे उरुविल्व ग्राम में पहुँचे। वह
स्थान निरंजना नदी के किनारे अत्यंत मनोहर और समथल था।
वहाँ पर कुछ सुंदर पेड़ भी थे जिन पर लताएँ चढ़ी हुई थीं; और
निरंजना का घाट भी स्नानादि के योग्य.था, और जल शुद्ध तथा
वेग-रहित था। वह स्थान गौतम, ने सव प्रकार से योगसाधन के
पृष्ठ:बुद्धदेव.djvu/८७
Jump to navigation
Jump to search
यह पृष्ठ शोधित नही है
