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पृष्ठ:बुद्ध-चरित.djvu/१००

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(३६)

पिता को निदेश पाय सुंदरी कुमारी उठी,
लीने जयमाल दोऊ हाथ मेँ सजाय कै।
कंचनकलित पाटसारी खैंचि आनन पै,
घूँघट बढ़ाय चली मंद पग नाय कै।
डोलति समाज बीच पहुँची ता ठौर जहा,
सोहत सिद्धार्थ छटा दिव्य छहराय कै।
ठाढ़ो है समीप जाके अश्व चुपचाप सब
चौकड़ी भुलाय, कार कंठहिँ नवाय कै।

कुँवर के पास जाय आनन उघार्यो वाने
जापै अनुराग के उमग की प्रभा छई।
कंठ बीच डारी जयमाल झुकि छुयो पद,
पुलकित गात बोली भाव से भरी भई।
"फेरौ मेरी ओर दीठि नेकु तो, कुमार प्यारे!
मैं तो सब भाँति सो तिहारी आज ह्वै गई"।
प्रमुदित लोग भए देखि उन दोउन को
जात कर बीच कर धारे प्रीति सोँ नई॥




बहुत दिनन में भए बुद्ध सिद्धार्थ कुँवर जब
बिनती करि यह मर्म जाय तिनसोँ बूझ्यो सब-
कनकखचित सो चित्रित सारी क्यों कुमारि धरि
चली हृदय में गर्व और अनुराग इतो भरि?