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चतुर्थ सर्ग
जब दिन पूरे भए बुद्ध भगवान् हमारे
तजि अपनो घर बार घोर बन और सिधारे।
जासौँ पसो खभार राजमंदिर मेँ भारी,
शोकविकल अति भूप, प्रजा सब भई दुखारी।
पै निकस्यो निस्तारपंथ प्राणिन हित नूतन;
प्रगट्यो शास्त्र पुनीत कटैं जासौँ भवबंधन।
महाभिनिष्क्रमण
निखरी रैन चैत पूनो की अति निर्मल उजियारी।
चारुहासिनी खिली चाँदनी पटपर पै अति प्यारी।
अमराइन में धँसि अमियन को दरसावति बिलगाँई,
सीँकन में गुछि झूलि रही जो मंद झकोरन पाई।
चुवत मधूक परसि भू जौ लौँ 'टप टप' शब्द सुनावैं
ताके प्रथम पलक मारत भर में निज झलक दिखावैं।
महकति कतहुँ अशोकमंजरी; कतहुँ कतहुँ पुर माहीँ
रामजन्म-उत्सव के अब लौँ साज हटे हैँ नाहीँ।