पृष्ठ:बुद्ध-चरित.djvu/१८

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. . (२६) पाउ बसंत काह, सहि, करिहउँ कंत ण यक्कइ पासे । ब्रज, मारवाड़ी-'किअउ' =कियो। हम्मारी। खड़ी, पंजाबी-चलिम, मारिअ, चलिआ, जुझिया, बुझिया (=चल्या चला, मारया मारा, इत्यादि) । रक्खो, रक्खे, हो, ढोल्ला, पयाणा, सज्जा हूआ (ब्रज के समान ढोल्लो, पयाणो, सजउ हुयउ नहीं)। तुम्हाण अम्हाण = तुम्हें हमें । तुम्हा (पुराना रूप)= तुम्हारी। हसंती, हरंती (कृदंत रूप हँसती, हरती)। बैसवाड़ी, अवधी-'करूधरू' = किया, धरा (तुलसी का 'कर धर' )। चल = चलती है, ताव = तपाता है, बह = बहता है (उ०-उत्तर दिसि सरजू बह पावनि)। आव = आया। आवे= आए% आवेगा ( जैसे, ऊ कब आए ? )। पाा, मिटाया = पावा, मिटावा= पाया, मिटाया। बड़बड़ा। लग% पास, निकट (ठेठ अवधी)। कहिा= कब ( ठेठ पूरबी या अवधी । उ०- कह कबीर किछु अछिलो न जहिया । हरि बिरवा प्रतिपालेसि वहिपा). भोजपुरी, मैथिली, बँगला-इछल = इच्छा की। पूरल, मुअल = पूरा, मरा । तोहर वोहरा = तुम्हारा । णच्छि नहीं है ( मैथिलों की छि छि)। आछे,