(१६) चल कमल-णअणिआ । खलइ थण-वसणिया (१७) मण मज्झ बम्मह' ताव । णहु कंत अज्जु वि आव . (१८) णच्चे बिज्जू पिय सहिया। आवे कंता, सहि. कहिना? (१८) सोउ जुहिछिर संकट पाया। देवक लेविन कंण मिटाना (२०) गज्जउ मेह कि अंबर सामर । फुल्लउ यीव, कि बुल्लउ भम्मर । एक्कउ जीअ पराहिण' अम्मह । की लड पाउस, की लउ बम्मह। (२१) कालिका संगाम...! णच्चंती संहारा। दूरित्ता हम्मारो (२२) हत्थी जूहा । सज्जा हूमा (२३) तरुण तरणि तवइ धरणि पवण बह खरा । लग णहि जल, बड़ मरुथल जणजिवणहरा। दिसइ चलइ हिअत्र डुलइ, हम इकलि बहू घर णहि पिअ सुणहि पहिअ मण इछल कहूँ (२४) णव मंजरि लिजिअ चूअह गाछे। परिफुल्लिअ केसु णावण आछे। जए एत्यि दिगंतर जाइहि कंता। कि मम्मह णच्छि, कि णच्छि वसंता । (२५) जो पुण पर-उअपार बिरुज्झइ । तासु जणणि किं स्य थक्कइ बज्झइ । (१) मन्मथ । (२) नीप = कदंब । (३) पराधीन । (४) पर उपकार । (५) विरोध करता है।
पृष्ठ:बुद्ध-चरित.djvu/१७
दिखावट