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सुजाता

बसत रह्यो तहँ एक नदीतट पै भूस्वामी
धर्मवान्, धनधान्यपूर्ण, सुकृती औ नामी,
ढोर सहस्रन मूँड़ जाहि, जो न्यायी नायक,
आसपास के दीन दुखिन को परम सहायक।
'सेन' तासु कुलनाम, ग्राम हू ‘सेन' हि बोलत
बसि सुख सोँ जहँ सो भरि भरि नित मूठी खोलत।
रही सुजाता नारि तासु रुचि राखनहारी,
रूपवती, गुणवती, सती, भोरी, सुकुमारी।
मति गति गौरवभरी, दया दुख लखि दरसावति।
सब सोँ मीठे बचन बोलि परितोष बढ़ावति।
आनन पै आनंद, चाह चितवन में सोहति।
नारिन में सो रत्न, शील सोँ जनमन मोहति।
शांति सहित सुखधाम बीच बितवत दिन दोऊ;
दुख यदि कोऊ रह्यो, यहै संतति नहिँ कोऊ।
करी सुजाता लक्ष्मी की पूजा बहु भाँती;
नित्य सूर्य्य के मंदिर में सो उठि कै जाती।
करि प्रदक्षिणा बार बार निज विनय सुनावति,
धूप, गंध दै फूल और नैवेद्य चढ़ावति।
एक बार बन बीच जाय कर जोरि मनायो-
"ह्वैहै यदि, वनदेव! कहूँ मेरो मनभायो