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यहौ जानौँ, परति ऐसी आपदा हैँ आय,
छूटि जब सब धीरता मुँह मोरि जाति पराय।
जाय जैसे मरि कहूँ मम प्राणप्रिय यह लाल,
दरकि मेरो हियो ह्वैहै टूक द्वै तत्काल।
चाहिहौँ तो अवसि ही द्वै टूक सो ह्वै जाय;
अंक में शिशु दाबि यह वा लोक जाहुँ सिधाय।
बाट पति की रहौँ तब लौँ जोहती तहँ जाय
अंत वाकी घरी जब लौँ नाहिं पहुँचै आय।
किंतु मेरे सामने परलोक जो पति जाय,
चिता पै मैं चढ़ौँ वाको सीस अंक बसाय।
फूलि अंग समाहुँ ना जब अनल दहकै घोर;
उठे कुंडल बाँधि, छावै धूम चारों ओर।
लिखी है यह बात, जो सहमरण करती वाम
तासु पुण्यप्रभाव सोँ पति लहत है सुरधाम,
संग ताके करत सुख सोँ तहाँ विविध विहार
वर्ष एते कोटि ताके सीस जेते बार।
रहति मेरे हिये चिंता की न कोऊ बात;
दिवस जीवन के सदा आनंद में चलि जात।