पृष्ठ:बुद्ध-चरित.djvu/२०५

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होत तोहि विलोकि नरउद्धार की आशा सही,
मूठ जीवनचक्र की लखि परति अपने हाथ ही।
होय तव कल्याण सुख में रहैं तेरे दिन सने!
करौं मैं निज काज पूरा करति ज्यों तू आपने,

चहत यह आसीस जाको देव तू जानति रही।"
"काज पूरो होय प्रभु को" सुनि सुजाता ने कही।
शिशु बढ़ाए हाथ प्रभु की ओर हेरत चाव सोँ
करत बंदन है मनो भगवान को भरि भाव सोँ।




बोधिद्रुम


बल पाय पायस को उठे प्रभु डारि पग वा दिशि दिए
जहँ लसत बोधिद्रुम मनोहर दूर लौँ छाया किए;
कल्पांत लौँ जो रहत ठाढ़ो, कबहुँ नहिं मुरझात है,
जो लहत पूजा लोक में चिरकाल लौँ चलि जात है।

है होत आयो बुद्धगण को बोध याही के तरे।
पहिचानि प्रभु तत्काल ताकी ओर आपहि सोँ ढरे।
सब लोक लोकन माहिं मंगल मोद गान सुनात हैँ।
प्रभु आज चलि वा अछय तरु की ओर, देखौ, जात हैँ।