पृष्ठ:बुद्ध-चरित.djvu/२३१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(१७१)

पायँन पै हम परे; रह्यो जो कुँवर हिरायो
सब राजन महराजन सौं बढ़ि वाको पायो।
बोधिद्रुम तर फल्गु किनारे आसन लाई
जासोँ जग उद्धरै सिद्धि सो वाने पाई।
सब को साँचो सखा, सकल जीवनपति प्यारो
पै सब सोँ कहुँ बढ़िकै है सो, देवि! तिहारो,
जाके साँचे आँसुन ही को मोल कहैहै
जो अनुपम सुख प्रभु के वचनन सोँ जग पैहै।
"कुशल क्षेम सोँ हैं' कहिबो यह है विडंबना
सब तापन सोँ परे, तिन्हैँ दुख परसि सकत ना।
भेदि सकल भवजाल गए देवन तें ऊपर,
सत्य धर्म की ज्योति पाय जगमगत भुवन भर।
नगर नगर में ज्यों ज्यों फिरि उपदेश सुनावत
तिन मार्गन को जीव शांतिसुख जिनसोँ पावत,
त्योँ त्योँ पाछे होत जात तिनके नरनारी-
ज्यों पतझड़ के पात वात के ह्वै अनुसारी।
पास गया के रम्य क्षीरिकाबन में जाई
हम दोउन ने सुने वचन तिनके सिर नाई।
चौमासे के प्रथम अवसि प्रभु इत पधारिहैं,
उपदेशन सोँ मधुर शोक दुख सकल टारिहैँ।